हिन्दु देदो नाम मुझे नाम मुझे चाहे मुस्लिम कहलादो चाहे गुरुद्वारे के द्वारे या ईसा से मिलवादो चाहे तो गीता के पाठ कहूँ चाहे कुरान सिखलादो चाहे तो काशी विश्वनाथ या हाजिअली दिखलादो भगवान एक है नाम कई अरे क्यों समझ ना तू पाता क्यों हाथों में है कटार , क्यों मानवता झुठलाता क्यों धर्म के पर अधर्म तू करता जाता करता जाता अरे!अब तो बस कर बहुत हो गई मज़हब धर्म जाती कि लड़ाई मारा जो वो हिन्दुस्तानी था भाईजान कहो या भाई रक्त जो निकला लाल रंग था कैसे पहचानूँ किस मज़हब का मैंने तो ना पाईं वो आँखें जो देख सकें किसी अंतर को चेहरा दिखे ना आवाज़ कहे किस मै किस जाति किस मज़हब का फिर क्यों तू अंतर करता है ऊपरवाले ने जब न किया हम एक पहचान एक हिन्दुस्तानी हमें नाम दिया हिन्दुस्तानी हमें नाम दिया ।.